मार्च २००६
लक्ष्य
निर्धारित हो तो कोई भी कार्य असम्भव नहीं है. उस की प्राप्ति में जो कुछ भी हमें
करना पड़े, जो भी सहना पड़े वह सदा कल्याणकारी ही होगा, किन्तु लक्ष्य ऐसा हो जो
हमें आगे बढ़ाए, उन्नति के पथ पर, विकास के पथ पर, जो सभी के लिए हितकर हो. प्रभु
प्राप्ति का लक्ष्य तो सर्वोपरि है, शेष सारे छोटे-मोटे लक्ष्य इसी में समा जाते
हैं. ‘स्वयं’ को जानने का लक्ष्य भी इसी दिशा में ले जाता है. आनंद की खोज भी इसी
दिशा में उठाया कदम है. सेवा, साधना, सत्संग व स्वाध्याय इस यात्रा में गति भरते
हैं.
" संसार विष वृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे ।
ReplyDeleteकाव्यांमृतरसास्वादन संगतिः सज्जनैः सह॥"
बहुत ठीक कहा है शकुंतला जी आभार !
ReplyDeleteस्वयं’ को जानने का लक्ष्य भी इसी दिशा में ले जाता है. आनंद की खोज भी इसी दिशा में उठाया कदम है. सेवा, साधना, सत्संग व स्वाध्याय इस यात्रा में गति भरते हैं....
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