संशय
रूपी पक्षी के दो पंख होते हैं, पहला दुष्ट तर्क दूसरा क्लिष्ट तर्क. पहले तर्क से
दूसरों को कष्ट होता है, तो दूसरे प्रकार के तर्क से हम स्वयं ही फंस जाते हैं.
निर्दोष चित्त का प्रसाद है अतर्क, भक्ति पूर्ण हो तो तर्क के लिए कोई जगह ही नहीं.
भक्ति का अर्थ है सत्य के प्रति समर्पित होना, जो सही है उसको ही चाहना, तब जीवन
में आगे बढ़ने के मार्ग अपने आप खुलते जाते हैं. किसी फल की आकांक्षा के बिना
कृतज्ञता स्वरूप तब जीवन यात्रा की जाती है तो बिना किसी बाधा के वह फलीभूत होती
है.
बहुत सुंदर पोस्ट.
ReplyDeleteसत्य के प्रति समर्पित और जीवन प्रति कृतग्य होना ही---राह और मंजिल बन जाते हैं.
सुखद, सरल और सुंदर लेख आभार।
ReplyDeleteभक्ति के आगे तर्क नहीं टिक पाटा ...
ReplyDeleteआभार
ReplyDelete" सत्यमेव जयते नानृतम् ।"
ReplyDeleteराजेन्द्र जी, अभिषेक जी, शकुंतला जी, दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
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