जनवरी २००६
कभी-कभी साधक
को लगता है कि मन स्थिर नहीं है, ऊपर-ऊपर से देखें तो लगता है कोई विशेष कारण नहीं
है पर गहराई में जाकर देखें तो पता चलता है मन किसी अभाव का अनुभव कर रहा है, उसे
क्या चाहिए यह भी उसे पता नहीं है, पर अभाव उसी को होता है जिसकी कोई कामना शेष रह
गयी है. मानव की सबसे बड़ी कामना होती है खुद को जानने की, आनंद को पाने की, पर मन
यह नहीं जानता कि स्वयं को मन के पार जाकर ही पाया जा सकता है. मन को मिटना होगा
उस आनन्द को पाने के लिए और मन वास्तव में है भी मरणशील क्योंकि जड़ प्रकृति का
अंश है. स्वयं को जानने का अर्थ यही है कि द्रष्टा भाव में रहकर मन में उठने वाली वृत्तियों
को देखना, देखने मात्र से वह शांत हो जाता है और स्वयं ही चुप होकर बैठ जाता है.
स्वयं को जानने का अर्थ यही है कि द्रष्टा भाव में रहकर मन में उठने वाली वृत्तियों को देखना, देखने मात्र से वह शांत हो जाता है और स्वयं ही चुप होकर बैठ जाता है.......
ReplyDeletebilkul sach ....
ReplyDeleteराहुल जी, व सदा जी स्वागत व आभार !
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