Monday, May 12, 2014

मिल कर भी जो कभी न मिलता


संतजन कहते हैं, शिव तत्व सृष्टि के कण-कण में है, वह हमारे भीतर भी है, उसे जगाना ही वास्तविक पूजा है. जब मन में कामनाओं, वासनाओं तथा महत्वाकांक्षाओं का जाल न फैला हो, मन खाली हो तब वह शिव तत्व जो पहले से ही वहाँ है, प्रकट हो जाता है. हमारी शुद्ध चेतना उसी से बनी है. वह प्रेम है, सौन्दर्य है, कल्याणकारी है, अखंड है, निर्दोष है, शाश्वत है, निर्द्वन्द्व है, ज्ञान स्वरूप है. उस शिव तत्व को एक बार जान लेने के बाद उसका विस्मरण नहीं होता, उसके रहस्य धीरे-धीरे करके खुलते हैं लेकिन कभी पूरे नहीं होते. वह जान कर भी जाना नहीं जाता, वह अनुभव की वस्तु नहीं, शब्दों में नहीं आता, पर एक बार जिसे उसकी झलक भी मिल गयी वह स्वयं को तृप्त अनुभव करता है. पर यह तृप्ति उसकी प्यास को बढ़ाती है, जगत की प्यास को मिटा देती है. 

3 comments:

  1. यह तृप्ति उसकी प्यास को बढ़ाती है, जगत की प्यास को मिटा देती है.

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  2. सत्यम शिवम सुंदरम ...!!बहुत सुंदर बात अनीता जी ...!!

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  3. धीरेन्द्र जी, व अनुपमा जी, स्वागत व आभार !

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