मार्च २००६
अपने
मन के अनुकूल कुछ घटे तो मानना चाहिए हरिकृपा हो रही है और यदि प्रतिकूल हो तो विशेष
कृपा मानकर सहर्ष ही उसे स्वीकार लेना चाहिए ! अनूकूलता हमें सुला सकती है, प्रतिकूलता
में हम सजग होते हैं. संतजन तभी तो कहते हैं यह संसार दुखों का घर है, ताकि हम
सुखों में खो न जाएँ. हो सकता है यह संसार कभी किसी के लिए सुखों का अम्बार लगा दे
पर तब भी यदि वह सजग नहीं रहे तो छोटी सी भूल भी उसमें से दुःख पैदा कर सकती है.
दैविक, भौतिक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार की व्याधियों में से कोई न कोई मानव के
साथ लगी ही रहती है, सजग होकर जब हम इनका सामना करते हैं तो ये हमें भीतर जाने का ज्ञान
देती हैं . सत्य को जानने की उत्कंठा, सब दुखों से मुक्त होने की इच्छा भीतर जगती
है. जब कोई लक्ष्य हमारे सम्मुख रहता है तो संसार की छोटी-छोटी बातें हमारा ध्यान
नहीं खींच पातीं, हम उनसे ऊपर उठ जाते हैं. तब अनुकूलता-प्रतिकूलता में कोई भेद ही
नहीं रहता.
सत्य को जानने की उत्कंठा, सब दुखों से मुक्त होने की इच्छा भीतर जगती है. जब कोई लक्ष्य हमारे सम्मुख रहता है तो संसार की छोटी-छोटी बातें हमारा ध्यान नहीं खींच पातीं, हम उनसे ऊपर उठ जाते हैं.....
ReplyDeleteलक्ष्य जरूरी है जीवन का ... प्रेरक भाव ...
ReplyDeleteअनुकूलता और प्रतिकूलता मे ,सम भाव से जीना है जीवन ...सुंदर बात ...!!
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