Tuesday, May 20, 2014

गोपी मनहर सुंदर हरिओम


कृष्ण रसावतार है, उसका स्मरण होते ही गोपियों का हृदय द्रवित होकर बहने लगता है. उसे वे प्रेम क्या करें उनका नाम लेते ही भीतर सब कुछ बदलने लगता है. उसका साथ तृप्ति से भर देता है. भीतर जो पुलक बन कर अंग-प्रत्यंग में स्पन्दित हो रहा है वह अनंत ही उनकी आराधना का अधिकारी है. वह स्वयं पूर्ण है, पर एकाकी नहीं रहता तभी तो एक से अनेक हो जाता है, प्रेम का आदान-प्रदान करता है और उनके साथ खेलता है. वह सच्चा साहिब उन्हें बहुत प्रिय है, गोपियाँ भी क्या किसी से कम हैं, उसका ही एक रूप वे भी तो हैं.


4 comments:

  1. हे नटवर - नागर आ जाओ ।
    मन प्यासा है प्यास बुझाओ॥

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  2. तभी तो एक से अनेक हो जाता है.....

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  3. भीतर जो पुलक बन कर अंग-प्रत्यंग में स्पन्दित हो रहा है वह अनंत ही उनकी आराधना का अधिकारी है. वह स्वयं पूर्ण है, पर एकाकी नहीं रहता तभी तो एक से अनेक हो जाता है, प्रेम का आदान-प्रदान करता है और उनके साथ खेलता है....

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  4. शकुंतला जी, सदा जी व राहुल जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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