भक्ति की व्याख्या कहते हुए आगे गुरूजी कहते हैं, हनुमानजी भक्तों में शिरोमणि हैं. हनुमान के भीतर रोम-रोम में राम ही बसे हैं. किसी -किसी क्षण में भक्त भगवान से भी बड़ा हो जाता है. राम से ज्यादा शक्ति हनुमान में है. भगवान भक्त को उससे ज्यादा समझते हैं, वह उसकी दुर्बलता और ताकत दोनों को जानते हैं. हनुमान जब स्वयं की शक्ति को भूल गए थे तब जाम्बवान के द्वारा ईश्वर ने ही सम्भवतः उन्हें उसकी याद दिलाई. भक्त कभी अकेलापन महसूस नहीं करता. उसके आराध्य की एक नजर से उसके कर्म नष्ट होने लगते हैं. गुरु के सम्मुख भी यही होता है. उनकी शाब्दिक शक्ति से अधिक होती है उनकी उपस्थिति. जिसके भीतर ज्ञान और भक्ति का संगम हुआ है, वहीं अमृत प्रकटता है. गुरु के प्रति श्रद्धा हो तो उनकी बात पर भरोसा करना आसान है. अल्प बुद्धि में फंसा व्यक्ति शीघ्र भरोसा नहीं कर पाता। जो बुद्धत्व को प्राप्त करता है उसकी बुद्धि प्रकांड होती है, किन्तु वह बुद्धि के पार चले जाते हैं. जिस नाव में बैठकर नदी पार की, उसे तट पर जाकर तो छोड़ना पड़ेगा. भक्ति के क्षेत्र में तर्क का कोई स्थान नहीं है. तर्क कब कुतर्क बन जाता है पता ही नहीं चलता. वितर्क से आत्मज्ञान होता है .हर अनुभूति तर्क से परे है. मन्त्र शक्ति भी अतार्किक है, कृपा भी अतार्किक है.
उपयोगी प्रवचन।
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