बुद्ध को जब ज्ञान हुआ तो उन्हें प्रफ्फुलित और आभावान देखकर एक व्यक्ति ने पूछा, क्या आप कोई देवता हैं ? क्या आप गन्धर्व हैं ? क्या आप मानव हैं ? हर बार उन्होंने इंकार किया, आखिर उसने पूछा, आप कौन हैं ? बुद्ध ने कहा मैं जागा हुआ हूँ, मैं जागृत हूँ ! उस व्यक्ति ने कहा होगा, मैं भी इस समय जगा हूँ, सो तो नहीं रहा, आप यह किस जागरण की बात कर रहे हैं? युग-युग से सभी सन्त व शास्त्र इसी जागरण की बात कहते आ रहे हैं, जिसमें व्यक्ति सौ प्रतिशत वर्तमान में ही रहता है. मनसा, वाचा, कर्मणा वह प्रतिपल सचेत रहता है. वह सत्य के प्रति भी सदा जागृत है अर्थात निरन्तर परिवर्तनशील इस जगत को नाशवान मानता है. वह जानता है कि इस जगत में सभी कुछ एकदूसरे पर आश्रित है. देह व मन की गहराई में स्थित शून्य अवस्था का भी उसे ज्ञान है. उसकी प्रज्ञा जग गयी है, वह घटनाओं के पीछे छिपे कारण को भी देख लेता है, इसलिए उनसे प्रभावित नहीं होता. व्यक्तियों के व्यवहार के पीछे कारण को भी समझने वाला वह किसी भी व्यक्ति के व्यवहार से सुखी-दुखी होना छोड़ देता है. वस्तुओं के संग्रह की उसे आवश्यकता नहीं, जितना और जब आवश्यक हो उतना ही ग्रहण करने की आशा वाला वह लोभ को त्याग देता है. देह को साध्य नहीं साधन मानकर वह ध्यान के लिए उसे स्वस्थ रखता है.
सुन्दर और प्रेरक कथानक।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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