Sunday, June 21, 2020

भक्ति एक रूप अनेक


जैसे सूर्य की किरण श्वेत है पर उसमें सात रंग छिपे हैं, वैसे ही भक्ति का रूप प्रेम है पर उसमें ग्यारह प्रकार की सुगंध छिपी है. पहला प्रकार है प्रेमास्पद की गुण महिमा गाना, जिससे हम प्रेम करते हैं, उसके गुणों का बखान करना स्वाभाविक है. दूसरा प्रकार है उसके रूप के प्रति आसक्त होना. सौंदर्य के प्रति समर्पित व्यक्ति आक्रामक नहीं होता. जहाँ भी सुंदरता है भक्त को उसके पीछे वही दिखता है. अरूप के प्रति समर्पित होकर रूप का दर्शन करना है, रूप से फिर अरूप की और जाना है.  जैसे प्रकृति में विविधता है, वैसे ही मानव भी विभिन्न कलाओं के माध्यम से उस रूप को व्यक्त करता है. मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तु हर सृजन के पीछे भक्ति है. पूजासक्ति भक्ति का तीसरा प्रकार है. भीतर पूर्णता का अनुभव करके जो भी कृत्य किया जाता है वह पूजा है. स्मरणासक्ति अर्थात स्मृति में बने रहना,  जिसे प्रेम करते हैं उसकी याद बने रहना भी भक्ति का एक रूप है. दास्यभाव भक्ति का अगला प्रकार है,भक्त ईश्वर के दास हैं,  इस भाव में एक निश्चिंतता है, स्वामी को सब समर्पण कर दिया है, अब उसके कुशल-क्षेम की रक्षा वही करेंगे. सख्यासक्ति में भक्त भगवान को अपना सखा मानता है. सखा भाव में हर भेद मिट जाता है, वे हर वस्तु बांटते हैं. वात्सल्यासक्ति में भगवान को अपना शिशु मानकर प्रेम जताना भी भक्ति है. कांतासक्ति में ईश्वर में प्रियतम भाव को आरोपित किया जाता है. ईश्वर को अपना प्रियतम मैंने से उससे कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता. तन, मन, धन सब कुछ उसे समर्पित कर देना ही कांतासक्ति है. इसके बाद आती है आत्मनिवेदनासक्ति जिसमें सभी भावों को उन्हें समर्पित कर देता है. तन्मयासक्ति में भक्त भगवान के स्मरण, उसके रस में, उनकी स्मृति में पूरी तरह से डूब जाता है. परमविरहासक्ति में प्रियतम के अभाव से ही भक्ति का अनुभव होता है. विरह की पीड़ा ही भक्त के हृदय में दर्द भरा आनंद भर देती है.  

2 comments:

  1. योगदिवस और पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।

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