सन्त कहते हैं यह जीवन ही धर्मक्षेत्र है. धर्म का अर्थ है जो धारण करता है, क्षेत्र का अर्थ है खेत. जीवन इसी में स्थित है. यह देह ही कुरुक्षेत्र है, जहाँ हमें कर्मों के बीज बोने हैं. हमें अपने मन की गहराई में स्थित उस परम जीवन, उस चैतन्य आत्मा रूपी जीवन में ही कर्म रूपी यज्ञ करना है. वही बीज बाहर हमारे जीवन में सुख-दुःख रूपी फलों को प्रदान करते हैं. साधना के द्वारा जब हम स्वयं को परम से एक कर लेते हैं तब हमारे बीज उस परम अग्नि में जलकर भस्म हो जाते हैं और कोई फल नहीं देते. तभी हम मुक्ति का अनुभव करते हैं.
उपयोगी प्रवचन।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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