आगे नारद जी कहते हैं, कर्म और ज्ञान से भक्ति श्रेष्ठ है क्योंकि वह दोनों में ओतप्रोत है. भक्ति कर्म का भी आधार है. कर्मयोगी अति संवेदनशील होता है.. कर्म के आरंभ में निष्ठा के रूप में भक्ति है, कर्म करते समय आनंद के रूप में भक्ति है और कर्म का लक्ष्य यदि शांति है तो उस रूप में भी भक्ति का अनुभव ही कर्मयोगी करता है. इसी तरह जिस विषय के प्रति लगाव नहीं है उसका ज्ञान भी कैसे प्राप्त करेंगे. ज्ञान में रूचि के रूप में भक्ति है. जिस ज्ञान से हम विस्मित नहीं होते, वह ज्ञान भी ज्ञान नहीं है, विस्मय आनंद देता है, इसलिए ज्ञान के लक्ष्य पर भी भक्ति है. भक्ति के बिना ज्ञान अंधा हो जाता है, कर्म लँगड़ा हो जाता है.
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteयोग दिवस और पितृ दिवस की बधाई हो।
स्वागत व आभार !
ReplyDelete