जीवन अपार संभावनाएं लिए हमारे सम्मुख खड़ा है. हम ही उससे आँखें चुराए अपने आपको एक बंधे-बंधाये क्रम में ढाल कर अपनी ऊर्जा को व्यक्त होने से रोकते हैं. परमात्मा की ऊर्जा भिन्न-भिन्न आकारों से पल-पल व्यक्त हो रही है. कोई कलाकार एक अनगढ़ पत्थर को सुंदर शिल्प में बदल देता है, कोई सात सुरों से ऐसी मोहक धुन निकालता है कि जड़-चेतन सभी उसे सुनकर ठिठक जाते हैं. कहीं वह परमात्मा वीरों के रूप में प्रकट हो रहा है तो कहीं संतों के रूप में. अनेकानेक फूलों, पंछियों और तितलियों के रूप में भी तो वही ऊर्जा व्यक्त हो रही है. इस ऊर्जा का स्वभाव है प्रेम और आनंद ! ध्यान की गहराई में इसका अनुभव होता है और सेवा के रूप में जगत में यह प्रकट होती है. उन कर्मों से यह प्रकट होती है जो जगत के प्रति प्रेम से प्रकटे हों या आनंद के अतिरेक में सहज ही होते हों. मन जब इतर कामनाओं से खाली हो, तब इस ऊर्जा का अनुभव कण-कण में उसे होता है. शास्त्र इसे ही भक्ति कहते हैं. भक्त का अंतर जब इस भक्ति का स्वाद ले लेता है तो जगत के अन्य स्वाद उसे नहीं भाते. जीवन में उसे कुछ पाने का नहीं सहज होकर जीने का मार्ग भाता है. भविष्य की कल्पनाएं और अतीत की उपाधियों से परे वह केवल वर्तमान में ही रहने लगता है.
स्वागत व आभार !
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