Monday, June 22, 2020

त्वमेव माता च पिता त्वमेव

भक्ति के ग्यारह विभिन्न भाव एक दूसरे के साथ जुड़े हैं. हरेक व्यक्ति में इनका कुछ न कुछ अंश होता ही है. कोई एक प्रकार का भाव अलग-अलग व्यक्तित्व में प्रमुखता से दिख सकता है. सदगुरू कहते हैं भक्त लोकलाज की परवाह नहीं करते, जगत की निंदा-स्तुति की परवाह न करने वाले ही भक्त हो सकते हैं. प्रेम से ही ईश्वर तुष्ट होते हैं. हम संसार में अपना बल खोजते हैं, ईश्वर का बल मिल जाने पर किसी और बल की जरूरत ही नहीं है. जगत के साथ संबन्ध बन्धन लगता है ईश्वर के साथ जो बन्धन है वह बन्धन नहीं लगता, वह मुक्ति का द्बार खोल देता है. वह ध्यान के लिए अनुकूल है, भक्ति ध्यान के लिए और ध्यान भक्ति के लिए जरूरी है. किसी के भीतर भक्ति सहसा भी घट सकती है जैसे बिजली का चमकना और अभ्यास से भी जैसे सूर्य का उगना. योग करने, साधना करने से भीतर ध्यान की रूचि जगती है, पूजा में भी रूचि जगती है, और एक दिन भक्ति का उदय होता है. कोई इस पथ पर आरम्भ से ही चल पड़ता है. भक्त की दृष्टि से परमात्मा सारे जगत की सेवा कर रहा है. 

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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