सितम्बर २००३
सागर में निरंतर लहरें उठती-गिरती हैं, तट से टकरा कर लौट जाती हैं, तट पर बैठा
व्यक्ति उन्हें देखता है, उनसे पृथक रहकर वह उन्हें अनुभव करता है वैसे ही हमारे मन-सिंधु
में निरंतर सुख-दुःख की लहरें आती-जाती हैं, हम उन्हें देखते रहें तो वे अपने-आप
ही चली जाती हैं, इस तरह हम पूर्व जन्मों के तथा इस जन्म के पूर्व कर्मों के फलों
को काटते जाते हैं, यदि सुख-दुःख के भोक्ता बने तो नए बीज डाल दिए, जिन्हें भविष्य
में काटना होगा तथा यह चक्र अनवरत चलता ही रहेगा. सत्संग से हमारे पूर्व संस्कार
नष्ट होते हैं तथा नित नए सात्विक संस्कार बनते हैं जो बंधन में डालने के लिए नहीं
वरन् मुक्त करने के लिए हैं. इस ज्ञान में स्थित हैं तो कोई भय प्रतीत नहीं होता,
कोई भी इच्छा बांधती नहीं. मन पंछी मुक्त हो उड़ता है. हमारे भीतर ही पशुता,
मानवीयता और देवत्व छिपा है. साक्षी भाव मानवीयता को विकसित करते हुए देवत्व तक ले
जाता है, हम मांगने की प्रथा छोड़कर देने की स्थिति में आ जाते हैं. आत्मा स्वयं
में पूर्ण है, संसार से हमें ऐसा कुछ भी नहीं मिल सकता जो पहले से ही उसमें नहीं
है, फिर पूर्ण अपूर्ण को क्या दे सकता है. प्रेम, आनंद, शांति, संतुष्टि, ज्ञान यह
सभी भीतर हैं और एक बार मिल जाने के बाद कभी खोते नहीं. साक्षी अलिप्त है, सदा
एकरस और सदा उत्साह से परिपूर्ण. वह नित्य सक्रिय है, वह ऊर्जा है, ऊर्जा का
अपरिमित भंडार, वह द्रष्टा है और स्रष्टा भी वही है.
बढ़िया रचना है अनीता जी कभी यहाँ भी पधारें www.arunsblog.in
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव ...!!
ReplyDeleteशुभकामनायें ....!!
पूर्वोतर के रचनाकारों के लिए आमंत्रण
ReplyDelete---------------------------------------------
मित्रो .....
हमारे देश के पूर्वोत्तर राज्यों में भी हिन्दी साहित्य प्रचुर मात्रा में लिखा जा रहा है। यहाँ प्रतिभा की कमी नहीं है। यहाँ के नई पुरानी पीढ़ी के हिन्दी रचनाकार देश के किसी भी हिन्दीभाषी रचनाकारों से कम नहीं ...जरुरत है उन्हें एक मंच देने की, उन्हें सामने लाने की ...। इसी सोच के साथ बोधि प्रकाशन इन र
चनाकारों के लिए एक काव्य संग्रह का प्रकाशन करने जा रहा है। संग्रह में शामिल किए जाने हेतु पूर्वोत्तर राज्यों के निवासी रचनाकार मित्रों से काव्य रचनाएं सादर आमंत्रित हैं। इस संग्रह का संपादन करेंगी पूर्वोत्तर की जानी-मानी रचनाकार हरकीरत 'हीर'।
कृपया स्त्री विमर्श पर आधारित अपनी दो, तीन रचनायें, संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ मेल करें ...
harkirathaqeer @gmail .com
bodhiprakashan@gmail.com
किसी प्रकार की जिज्ञासा होने पर हरकीरत हीर जी से इस नंबर पर संपर्क किया जा सकता है-
09864171300
सुन्दर ज्ञानवर्धक पोस्ट |
ReplyDeleteवह द्रष्टा है और स्रष्टा भी वही है.
ReplyDeleteअनुपम भाव
आत्मारूपी सागर से मन की लहरें ही प्रभु के पग पखारती हैं
ReplyDeleteवाह ! अति सुंदर भाव !
Deleteअनुपमा जी, सदा जी, मीनाक्षी जी, अरुण जी व रश्मि जी तथा हीर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसागर में निरंतर लहरें उठती-गिरती हैं, तट से टकरा कर लौट जाती हैं, तट पर बैठा व्यक्ति उन्हें देखता है, उनसे पृथक रहकर वह उन्हें अनुभव करता है वैसे ही हमारे मन-सिंधु में निरंतर सुख-दुःख की लहरें आती-जाती हैं,
ReplyDeleteज्ञानवर्धक
परमानंद तो साक्षीभाव में ही निवास करता है।सुंदर व ज्ञानप्रद लेखन।
ReplyDeleteइस ज्ञान में स्थित हैं तो कोई भय प्रतीत नहीं होता, कोई भी इच्छा बांधती नहीं.....बहुत ही सुन्दर
ReplyDelete