हम सभी एक विशाल
समष्टि के अंग हैं, इस नाते सभी एक-दूसरे से बंधे हैं पर हमारी अलग-अलग पहचान है,
जब यह पहचान भी नहीं रहती तब मन सारी सीमाओं को तोड़कर असीम में मिल जाता है. हममें
से हरेक की चेतना अनंत है पर हम छोटे-छोटे दायरों में बंधे होने के कारण उस
विशालता का अनुभव नहीं कर पाते हैं. समाधि की अवस्था में सम्भवतः ऐसा ही अनुभव
होता है, सारा का सारा ब्रह्मांड एक तत्व से बना है यह स्पष्ट होता है, फिर कोई
भेद नहीं, अद्वैत का अनुभव होने के बाद अंतर में राग-द्वेष नहीं रह सकते.
सुन्दर रचना
ReplyDeleteहम छोटे-छोटे दायरों में बंधे होने के कारण उस विशालता का अनुभव नहीं कर पाते...
ReplyDeleteRECENT POST LINK...: खता,,,
और वह अनुभव ही सत्य है
ReplyDeleteआपने सही कहा है, रश्मि जी !
Deleteएक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे जड़ या चेतन ,
ReplyDeleteहिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँव ,
एक पुरुष भीगे नयनों से ,देख रहा था ,प्रलय प्रवाह ,
ऊपर हिम था नीचे जल था ,एक तरल था ,एक सघन ,
एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे जड़ या चेतना .
हम सभी इस अखिल सृष्टि के ही अलग अलग हिस्से हैं .सारी कायनात परस्पर अवगुंठित है .
अरुण जी, धीरेन्द्र जी आपका स्वागत व आभार !
ReplyDeleteसुन्दर सत्य ।
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