अक्तूबर २००३
वेणुगीत में गोपियों ने तेरह श्लोकों में कृष्ण की स्तुति की है, पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ,
पंच कर्मेन्द्रियाँ तथा मन, बुद्धि व चित्त ये तेरह तत्व हैं. जीव रूपी गोपी को
अहंकार तज कर इन तेरह को प्रभु में लगाना चाहिए. बुद्धि भी ऐसी जो प्रज्ञा में बदल
जाये वरना बुद्धि का अहंकार शेष रहेगा, अध्यात्म पथ पर चलने वाले को दुनिया,
स्वर्ग और यहाँ तक की परमात्मा की भी चाह छोड़ देनी होती है, फिर इस छोड़ने को भी
छोड़ना होता है वरना त्याग का अहंकार ले डूबेगा. जब कुछ भी करना शेष न रहे, मन,
बुद्धि सभी उस आत्मा में समाहित हो जाएँ तब जो रहता है वही परम सत्य है. उसे जानकर
यह जगत एक क्रीड़ास्थल ही बन जाता है लेकिन उस स्थिति तक पहुंचना भी की कृपा के
बिना सम्भव नहीं है, और वहाँ तक गए बिना प्रभु की कृपा मिलती भी नहीं. हमें प्रयास
करना होगा तभी कृपा मिलेगी पर कृपा मिले बिना प्रयास भी कहाँ सम्भव है, यह तो
विरोधाभास हुआ पर अध्यात्म के पथ पर सारे विरोधाभास नष्ट हो जाते हैं, वहाँ की
रीति, नीति जगत की रीति से अलग है. उस सच्चिदानन्द घन की कृपा अपार है और वह सब
पर, सब समय, समान रूप से बरस रही है, किसी विशेष स्थान पर वह विशेष प्रकट होती है.
संत उनके हृदय में बसते हैं. उन्ही संतों को हम पावन भाव से भजते हैं तो हमारे
हृदय भी पावन होने लगते हैं, और तब कभी न कभी हम भी उस विशेष कृपा के अधिकारी हो
जाते हैं.
बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteइन्द्रियों के लोभ से मुक्त हुआ जो
ReplyDeleteवही गुरु है वही परमात्मा के संग है ...
विरोधाभास के बीच आपने बखूबी इस पथ पर प्रकाश डाला है, जिस पथ से अंतिम सत्य तक पहुंचा जा सकता है।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ।
ReplyDeleteसंगीता जी, रश्मि जी, मनोज जी व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !
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