सितम्बर २००३
यीशु के उपदेश दिल को छू लेते हैं, प्रेम से छलकता उसका हृदय हमारे हृदयों को
स्पंदित कर जाता है. वह गड़रिया है और हम उसकी शरण में हैं, हम उसकी अंगूर की बारी हैं
वह हमें रोपता है फिर हमारा ध्यान रखता है. हम उसके आश्रित हों तो वह हमें धरती का
नमक भी बना सकता है. वह चुन-चुन कर हमारे दोषों को दिखाता है फिर उन्हें दूर करने को
कहता है. वह प्रेम को सर्वोपरि मानता है,
हम सभी मूलतः प्रेम की उपज हैं. यह जगत प्रेम के आश्रित है. यीशु भी भक्त को
कान्हा की तरह प्रिय हैं, वैसे ही जैसे कबीर, नानक, तुलसी, और अन्य संत, माँ
शारदा, रामकृष्ण परमहंस तथा विवेकानंद. प्रीति ही हमें जगत में स्थिरता प्रदान
करती है. प्रीति यदि सच्ची हो तो हृदय को पवित्र बनाती है और उसमें दृढ़ता भी भरती
है, तब संसार भयभीत नहीं करता, अज्ञान ही भय का कारण है, और अहंकार ही अज्ञान का
कारण है. अहंकारी अंतर प्रेम नहीं कर सकता और न ही उस प्रेम का अनुभव कर सकता है
जो दिव्य है, जो किसी बाह्य वस्तु पर आश्रित नहीं है. वह रस अमृत के समान है जिसे
एकबार पा लेने के बाद संसारी सुख उसी तरह फीके पड़ जाते हैं जैसे सूर्य निकलने पर
चन्द्रमा. ईश्वर की कृपा के बिना यह रस हमें नहीं मिलता. ध्यान के लिए योग्यता और
सामर्थ्य हमें प्राप्त नहीं होता. सद्गुरु के कितने उपकार हैं कि उनका ज्ञान एक पथ
दिखाता है जिस पर चलकर हम लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं, लक्ष्य है-अंतहीन प्रेम..अनंत
प्रेम.
अज्ञान ही भय का कारण है, और अहंकार ही अज्ञान का कारण है. अहंकारी अंतर प्रेम नहीं कर सकता और न ही उस प्रेम का अनुभव कर सकता है जो दिव्य है, जो किसी बाह्य वस्तु पर आश्रित नहीं है.
ReplyDeleteआज की यह बातें बहुत अच्छी लगीं .....बहुत गहन ...एवं शक्तिशाली ...
आभार अनीता जी ....
अनुपमा जी, जौहरी की गति जौहरी जाने...प्रेम तत्व अबूझ है पर जो उसे महसूस करने लगे..उसके लिए नहीं..आभार!
Deleteअहंकार में प्रेम कहाँ ! प्रेम तर्कों में उलझ जाए,स्पष्टीकरण देने लगे-तो वह प्रेम होता ही नहीं.
ReplyDeleteप्रेम करनेवाला अपनी अनुभूतियों को किसी कसौटी पर नहीं रखता
रश्मि जी, आपने सही कहा है, प्रेम सब तर्कों से पार है..उसको कसौटी पर नहीं कसा जा सकता..वह तो बस है..आभार !
Deleteये साधना ही लक्ष्य है..
ReplyDeleteलक्ष्य है-अंतहीन प्रेम..अनंत प्रेम.
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ... भावमय करती प्रस्तुति..
सादर
यीशु भी भक्त को कान्हा की तरह प्रिय हैं, वैसे ही जैसे कबीर, नानक, तुलसी, और अन्य संत, माँ शारदा, रामकृष्ण परमहंस तथा विवेकानंद. प्रीति ही हमें जगत में स्थिरता प्रदान करती है. प्रीति यदि सच्ची हो तो हृदय को पवित्र बनाती है
ReplyDeleteTHEREFORE LOVE IS THE FORM OF LOVE.
THEREFORE LOVE IS FORM OF THE ALL MIGHTY GOD.
ReplyDeleteरमाकांत जी, आपने सही लिखा है प्रेम ही परमात्मा है..
Deleteअमृता जी व सदा जी आपका स्वागत व आभार !
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