सितम्बर २००३
प्रतिपदा है नवरात्रि का शुभारम्भ, दुर्गापूजा का महोत्सव आरम्भ होता है इसी दिन से. अमावस्या
को पितरों को जल अर्पण करने का दिन. हमारी संस्कृति में मृतकों के प्रति सम्मान
दिखाने के लिए भी कितना आयोजन है, हम ही हैं जो अपनी शुभ संस्कृति को भूलते जा रहे
हैं. हमारे जीवन का जो परम लक्ष्य है, सभी शुभकर्म उस तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध
होते हैं. किन्तु पूजा भी यदि सामान्य कर्म बन जाये तो उतना लाभ नहीं होगा जितना
तब यदि हमारे सारे कर्म ही पूजा बन जाएँ. हम भी कह सकें कि यहाँ दम दम पे होती है पूजा
सर उठाने की फुर्सत नहीं है....संतजन यही तो कहते हैं, हमें उनके ज्ञान के उजाले से
अपने भीतर उजाला भरना है, उनके वचन अनमोल मोतियों की तरह उनके भीतर के अकूत खजाने
से झरते हैं, यदि हम उसका शतांश भी ग्रहण कर सकें तो अपने लक्ष्य को पा सकते हैं. हमारे
जीवन को शुभतर तथा शुभतम बनाने के लिए जितने उपाय वह बताते हैं, वह अनंत ज्ञान सहज
ही उनके मुख से झरता है, उनकी आँखों से प्रेम झरता है तथा पोर-पोर से कृपा झरती है
यदि कोई भाग्यशाली उसे पा ले तो धन्य हो जाये. लेकिन गुरु का सान्निध्य विरलों को
ही मिलता है क्योकि वे ही उसकी आकांक्षा करते हैं, भौतिक दूरी अध्यात्म में कोई
मायने नहीं रखती यह भाव लोक है, जिसमें वे सदा हमारे साथ हैं, उनका प्रेम हमारे साथ
ही है, उसी से हमें अपने भीतर के ढके छिपे
ज्ञान को उभारना है, जोत जलानी है, अंतर के तिमिर को हरना है. माँ दुर्गा हमारे
विकार रूपी असुरों का दमन करें, जिससे शरद की शुभ्र चांदनी रूपी ज्ञान की ज्योति
जगमगा उठे.
सुन्दर रचना
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी उम्दा पोस्ट,,,
ReplyDeleteRECENT POST...: विजयादशमी,,,
आमीन ...
ReplyDeleteसुन्दर आलेख।
ReplyDeleteसुन्दर ज्ञानवर्धक जानकारी
ReplyDeleteअन्धकार से प्रकाश तक जाने का सही रास्ता
ReplyDeleteअरुण जी, धीरेन्द्र जी, सदा जी, इमरान, रमाकांत जी व रश्मि जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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