सितम्बर २००३
मुक्ति को पाना कितना सहज है. मन खाली हो तो मुक्त है. कोई चाह नहीं, कोई
संकल्प-विकल्प नहीं उठते तो मन रहता ही नहीं. मन जो व्यर्थ ही हम पर शासन करता है.
हम गुलाम बन के रह जाते हैं, और झूठा जीवन जीते हैं जबकि सच्चाई हर वक्त हमारे साथ
होती है. वह परम सत्य, परमेश्वर हमारी आत्मा का नित्य संगी है. पर मन हमारे व उसके
बीच एक पर्दा डाले रहता है. हम व्यर्थ ही स्वयं को खपाते, रुलाते और सताते, तपाते
हैं. हम जीवन के मर्म को जाने बिना ही जीवन जीते हैं. तत्व को जाने बिना मुक्ति
नहीं, विकारों से मुक्ति, कुविचारों से मुक्ति, सुविचारों से भी अन्ततः मुक्ति,
कोई द्वंद्व नहीं, केवल सहज भाव से अपने होने का अनुभव, कितना विचित्र है यह अनुभव,
कितना प्रेम भरा, नित्यता की खोज हमें प्रेम तक पहुंचाती है. हमारी साधना का
लक्ष्य प्रेम ही तो है, ईश्वरीय प्रेम, जो हमें उसकी हर वस्तु से प्रेम करना
सिखाता है. पुलक फिर रग-रग में भर जाती है और जीवन का रहस्य हथेली पर रखे आंवले सा
समझ में आने लगता है.
जीवन रहस्यों से भरा है .... हम उसीमें उलझ जाते हैं , जबकि मुक्ति पास होती है
ReplyDeleteहमारी साधना का लक्ष्य प्रेम ही तो है, ईश्वरीय प्रेम, जो हमें उसकी हर वस्तु से प्रेम करना सिखाता है.,,,,सत्य वचन,,,,
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएं,,,,
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जीवन का सुंदर चिंतनमयी व्याख्या।
ReplyDeleteमुक्ति को पाना कितना सहज है. मन खाली हो तो मुक्त है. कोई चाह नहीं, कोई संकल्प-विकल्प नहीं उठते तो मन रहता ही नहीं. मन जो व्यर्थ ही हम पर शासन करता है. हम गुलाम बन के रह जाते हैं, और झूठा जीवन जीते हैं
ReplyDeleteजीवन का सार
बहुत ही सुन्दर आलेख।
ReplyDeleteरश्मि जी, धीरेन्द्र जी,देवेन्द्र जी, रमाकांत जी व इमरान अप सभी का स्वागत व आभार !
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