Monday, October 8, 2012

ज्ञान साधना है


सितम्बर २००३ 
ज्ञान हमें मुक्त करता है. आत्मभाव में स्थित रहें यही तो ज्ञान है. ज्ञान में स्थित रहकर यदि कोई सत्य का अनुसंधान करता है, जगत उसके लिए अमृत बन जाता है. अनन्य निष्ठा तथा अनवरत सुमिरन और उसे पाने की चाह यदि बनी रहे तो ज्ञान हृदय में स्थिर होगा. हमारा मन उन्मुक्त गगन में विचरण करेगा. भीतर जो कतरा है वही दरिया बन जायेगा. कभी ऐसा भी प्रतीत हो कि कहीं न कहीं हमारे कर्त्तव्य निर्वाह में त्रुटि हो रही है, पर इससे मन की प्रसन्नता तथा शांति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वह अखंड है, वह परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती. आत्मभाव में रहने वाला मन अब यूँही विषादग्रस्त कैसे हो सकता है. वह निर्भार, निर्दोष और सहज होकर पल-पल आनंद में जीता है.

7 comments:

  1. सुंदर सहज ज्ञान ....कई दिनों से ब्लॉग पर आपके विचार नहीं मिले ...!!कभी समय निकालिएगा .....!!

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    1. अनुपमा जी,, स्वागत व आभार ! कुछ दिनों के लिए यात्रा पर गयी थी.

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  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार ९/१०/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी

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    1. राजेश जी, स्वागत व आभार !

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  3. बात तो बहुत पते की है लेकिन,मनुष्य केवल ज्ञान में स्थित कैसे रहे ,भावनायें,संवेदनायें,पारस्परिक जुड़ाव ,जो सामाजिक जीवन के लिये स्थिति और संचालन के लिये आवश्यक हैं ,उसका क्या उपचार करे !

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    1. प्रतिभा जी, मानव हर क्षण किसी न किसी ज्ञान में तो रहता ही है, बिना ज्ञान के एक कदम भी बढ़ाना कठिन है, यहाँ ज्ञान से अर्थ आत्म भाव से है, जिसमें हम भावना, संवेदना, जुडाव सभी के साक्षी मात्र रहते हैं, ये सब तो रहेंगे ही, पर हम इससे अलिप्त रहकर भी जगत में विचर सकते हैं, और तब जीवन एक उत्सव बन जाता है.

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  4. ज्ञान ही देता है सब ।

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