सितम्बर २००३
नींद भी प्राकृतिक समाधि ही तो है, नींद में सोया व्यक्ति लोभ, क्रोध, मोह से परे
हो जाता है, उसका चेहरा कितना निष्पाप लगता है. वह सारे सुखों-दुखों से परे हो
जाता है. ध्यान में भी हम ऐसी ही अवस्था का अनुभव करते हैं किन्तु जागते हुए. ऐसी
अवस्था में कई गांठें जो हमारे भीतर बंधी थीं अपने आप खुलने लगती हैं. जो भी घटना
भीतर घटेगी वह अपने आप ही होगी, हमारा प्रयास कुछ भी नहीं कर पायेगा, हम जो भी करेंगे
वह बुद्धि के स्तर पर ही होगा, पर हमें तो बुद्धि के परे जाना है. बुद्धि के पार
प्रज्ञा है जो बुद्धि को तीक्ष्ण और तीक्ष्णतर करते जाने से प्राप्त होती है.
भावलोक भी वहीं से प्रारम्भ होता है, वहीं से दिव्यता हमारा हाथ थामकर आगे ले जाती
है, वह हमें हमारी क्षमता के अनुसार राह दिखाती है और एक बार मंजिल की झलक भी दिखा
देती है.
सुंदर व सार्थक व्याख्या।गहरी निद्रा हमें सभी तनावों से मुक्ति प्रदान करती है और निश्चय ही यह एक प्रकार की समाधि अवस्था होती है।
ReplyDeleteदेवेन्द्र
शिवमेवम् सकलम् जगत
देवेन्द्र जी, आपका स्वागत व आभार !
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