Friday, October 19, 2012

दूर से दूर और निकट से निकट


सितम्बर २००३ 
उपवास का दिन साधना का विशेष दिन है, यूँ तो साधक के लिए हर घड़ी, हर क्षण साधना का क्षण है, उसे अनुभव होता है कि अपने कर्त्तव्यों में, भौतिक कार्यों में थोड़ी असावधानी बरती तो तुरंत मन स्वयं को फटकारने लगता है. वह कौन है जो भीतर से सचेत करता रहता है, सुबह जगाता है, जो एक प्यास जगाए रखता है भीतर, हम गलत रास्ते पर जा रहे हों तो सजग रखता है. वह  परमात्मा जिसे अपना सुह्रद, हितैषी माना है, जो अकारण दयालु है, जो हमसे प्रेम करता है, हम उ सके प्रेम के पात्र हैं अथवा नहीं वह इसकी रंच मात्र भी प्रवाह नहीं करता, वह जो प्रेम से परिपूर्ण है, वही हमें सजग करता है. साधना का पथ जितना सरल है उतना ही दुर्गम भी. यहाँ तो सर कटाने के लिए हर क्षण तैयार रहना पड़ता है, स्वयं को मिटा देना होता है, पर जब हम स्वयं को सर्वोपरि मानने लगें सिर्फ इसलिए कि हम साधक हैं तो हम उससे दूर ही रह जाते हैं. वह जितना निकट है उतना ही दूर है ! उसमें सारे द्वंद्व समाते हैं, वह द्वन्द्वातीत है. वह दुर्लभ है पर अलभ्य नहीं. उसकी ओ र यदि हम एक कदम बढाते हैं तो वह हजार कदमों से हमारी ओर आता है. वह अपने स्वभाव का परित्याग कभी नहीं करता पर हम सुविधानुसार अपना स्व भूलते व याद करते हैं, हम जिस क्षण भी अपने ‘स्व’ को भूलते हैं वह क्षण हमारे लिए दुखद बनता है. साधना का लक्ष्य तो सदा के लिए समस्त दुखों से मुक्ति है, ऐसे दुःख जो अज्ञानवश उत्पन्न हुए हैं, दूसरों के दुःख में दुखी होना करुणा है. हमारे स्व का विस्तार तभी होता है, जब हम सभी में उसी का दर्शन करते हैं.

4 comments:

  1. उपवास में आंतरिक ज्योंति का आभास होता है ...

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  2. साधक के लिए हर घड़ी, हर क्षण साधना का क्षण है,

    bahut hi sundar antarman ko batalati

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  3. रश्मिजी, रमाकांत जी व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !

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