Wednesday, January 16, 2013

प्रेम से प्रकट होए मैं जाना...


जनवरी २००४ 
हमारी जीवन शैली हिंसात्मक है या अहिंसात्मक इसका पता हमें दो-तीन बातों से लग जाता है, हम स्वतंत्रता का अनुभव करते हैं या परतंत्रता का, सापेक्षता का अथवा निरपेक्षता का, अशांति का अथवा शांति का. हमारा मन यदि क्षोभ से भर जाता है तो हम हिंसा के शिकार हैं, हम विरोध करते हैं, द्वंद्व का शिकार होते हैं तो भी हिंसा अपना कार्य कर रही है, हम असंवेदनशील हो रहे हैं, क्षमा नहीं कर  पाते तो हिंसा ही है. यही वह सूक्ष्म पर्दा है जो हम परमात्मा से अलग करता है. हम उसके प्रति प्रेम तो अनुभव करते हैं पर स्थिर नहीं रख पाते क्योंकि अब तक मन विरोध के भाव में आ चुका है. प्रेम में कोई विरोध नहीं होता, प्रेम सभी कुछ स्वीकारता है, अच्छा-बुरा सभी कुछ, विष-अमृत सभी कुछ !  

5 comments:

  1. प्रेम में कोई विरोध नहीं होता, प्रेम सभी कुछ स्वीकारता है, अच्छा-बुरा सभी कुछ, विष-अमृत सभी कुछ !

    इसीलिए प्रेम इश्वर का स्वरूप है

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  2. पूर्ण स्वीकरण समर्पण है प्रेम .

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  3. प्रेम ही समर्पण का स्वरूप है,,,,

    recent post: मातृभूमि,

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  4. रमाकांत जी, वीरू भाई, व धीरेन्द्र जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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