Wednesday, January 9, 2013

शांति है जहां प्रगति है वहाँ


जनवरी २००४ 
शान्ति पूर्वक सहअस्तित्त्व हमारी पहली आवश्यकता है, तभी किसी भी तरह का विकास सम्भव है. अहिंसा का अर्थ केवल शारीरिक हिंसा से बचना ही नहीं है, बल्कि हमें इसके सूक्ष्म स्वरूप को भी जानना होगा. क्रोध का कोई भी रूप हिंसा है, द्वंद्व भी हिंसा है, द्वन्द्वातीत हुए बिना मन शांत नहीं हो सकता. अहिंसा का प्रारम्भ सर्वप्रथम घर से होता है, आज समाज के बदले हुए वातावरण में घरेलू हिंसा का शिकार वृद्ध, महिलाएं, बच्चे, अशक्त सभी किसी न किसी रूप में हो रहे हैं, आये दिन जो समाचार तथा आंकड़े मिलते हैं, उन्हें देखकर आश्चर्य होता है कि क्या हम एक सभ्य समाज के नागरिक हैं? धर्म जब तक जीवन का एक मह्त्वपूर्ण अंग नहीं बन जाता, आचरण में नहीं उतरता, परिवर्तन नहीं होगा. घरों में नियमित संध्या, ध्यान तथा सद्ग्रन्थों का पाठ होता रहे तो बच्चों को संस्कार मिलते रहते हैं. आज पीढियों का अंतर बढ़ता जा रहा है इसे दूर करने का सबसे सुंदर उपाय है धर्म तथा अध्यात्म, जहां किसी भी तरह का कोई भेद नही होता.  

6 comments:

  1. आपने मेरे ह्रदय बात लिख दी ...मेरा भी यही सोचना है

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    1. स्वागत है रितु जी..

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  2. धर्म जब तक जीवन का एक मह्त्वपूर्ण अंग नहीं बन जाता,
    आचरण में नहीं उतरता,,,

    recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

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  3. पूरण जी व धीरेन्द्र जी स्वागत व आभार !

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  4. शत प्रतिशत सत्य.......घर से ही पहला कदम उठता है ।

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